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द्रोपदि को हरवा करके कीचक नीच भींच कर मारयो भीम भेषः त्रियका करके 1प०1 हांसा और महांसा के हित मुंझ मरयो तनता करके || मनरथ भूवो मयनरहा लखि अन रथ का फल पा करके ||१०||३|| राज सुता के काज रुद्र द्विज मरयो रीछ वश जाकर कें ।। अवर अनते जीव कुंगति गए जग में कुजस बढ़ा करके || १० ||४|| जो नर जितने पल पर त्रियको निरखे नेह निघा करकें ॥ ताकों तितने ही पल्यो पम तक मारें जमधाकरको ॥ प० ॥५॥ ख पराई ख्वारी परि हर पर त्रिय.. को भय खाकर के । सुगुरु मगन सुपसाय पाय मति माधव कहै समुझाय करक। । प० | ६ | इति । ***