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( २५ ) न छलै ॥ आगम दरसै जगत में जगमग जश की ज्योति जलै ॥ प्रति दिन बढे प्रताप चोगुणो प्रबल पापकी ताप टलै॥ दुरगति नाशै घोर उपसर्ग शमें वर वचने फल।।पूरण तेज पराक्रम आयू पाबै पावन थाबेडीलं । शि०॥ ३॥ शीलवत भगवत वरोवर यामें नहीं संदेह लगार ॥ शुध मन पाले शील सो शीघ्र होय मव दपिसे पासबिन समंकित परवश पाल्योहू शील विरत सुरगति दातार ॥ सुगुरु मगन से सुन्यो इम सूत्र उवाई के मझार ।। माधव कहै मनष तन पाके पालो शील करो 'मति दील | शि. ॥ ४ ॥ इति ॥