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अर्थात् क्रिया तो शक्ति अनुसार करो और जो न कर सको तो उसकी श्रद्धा तो अवश्य रक्खो, क्योंकि श्रद्धावान जीव ही कभी अजर अमर पद को पा सकेगा ।
पण्डित द्यानतररायजी ने भी कहा हैं
कीजे शक्ति प्रमाण शक्ति बिना श्रद्धा धरो । द्यानत श्रद्धावान अजर अमर पद भोगवे ॥
सम्यग्वोधानुरागी---
दीपचन्द्र वर्णी ।
सनात