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सुख से सोता है। यह इसी लिए कि एक चाह की दाह में जलता है और दूसरा चाह से दूर रहता है इत्यादि । इस लिये सबसे पहिले अपना लक्ष्य ठीक करना अर्थात् सच्चे सुख को पहिचानना चाहिये और वह आकुलता रहित मोक्ष ही है। यदि सव इसी को अपना लक्ष्य बना लेवें, तो इनके सब प्रयत्न सफल हों और अवश्य ही उसे प्राप्त कर सकें। ____ वास्तव में यह सुखा ( मोक्ष ) कोई भिन्न वस्तु नहीं है और न भिन्न स्थानों से प्राप्त होसकता है, किन्तु इन्हीं प्राणियों की जो अशुद्ध अवस्था होरही है,सो बदल कर शुद्ध होजानेका नामही मोक्ष है, वह स्वाधीन है, अपने पास है,अपना ही स्वरूप है। केवल दृष्टिबदलना है, किसीने कहा है "नुख्ता जो नीचे लग रहा है कि उसको ऊपर लगायेंगे,हम खुदा को खुद हीमें देखा लेंगे खुदही को जिस दम हटायेंगे हम इस लिए सबसे पहिले हमको यह निश्चय करना चाहिये, “कि मैं एक सच्चिदानन्द स्वरूप, शुद्धबुद्ध नित्य निरंजन, इन्द्रियों से अगोचर, अमूर्तिक श्रात्मा हूँ,
और जो ये शरीरादि पदार्थ इन्द्रियों के गोचर हो रहे हैं, अथवा इनमें जो मेरी अपनत्व या परत्व अथवा इष्ट और अनिष्ट बुद्धि हो रही है, सो ये सभी मुझसे पर हैं, जड़ हैं । श्रथवा उनके निमित्त से उत्पन्न हुए विभाव भाव हैं, इनमें मेरा कुछ भी नहीं है, मैं जब तक इनको अपनाता रहूंगा, तब तक ये मेरे साथ लगे रहेंगे और मैं स्वाधीनत्व अवस्था को प्राप्त नहीं कर सकूगा, इस लिये मुझे चाहिये, कि इन से ममत्त्व.बुद्धि हटाऊँ
और जैसे २ बन सके, इस प्रकार इनसे अलग हो जाऊं, कि जिससे मेरा अधिक बिगाड़ भीन होने पावें और ये छूट भीजाय।
. बस, जब यह निश्चय होंगया, तो इन से छूटने का उपाय