________________
(५४) · ४ नरकायु कर्म-जिस के उदय से नारकी की आयु पर्यंत नारकी के शरीर रूपी बंधन में रहना पड़ता है उसको नरकायु कर्म कहते हैं।
आयु २ प्रकार की होती है १ सोपक्रम २ निरुपक्रम ।
देव और नरक का आयु निरुपक्रम है अर्थात् विना पूरा भोगे जीव छूट नहीं सक्ता है वहां जीवको आयु पूरी भोगनी पड़ती है आयु पूर्ण होने पर मृत्यु होती है पहले नहीं होस
• ' मनुष्य और तिर्यंच का आयु सोपक्रम भी है और निरुपक्रम भी है अर्थात् कितने मनुष्य, तिथंच तो अपनी आयु पूरी भोग कर ही मरते हैं और कितने ही मनुष्य तिर्यंच की मृ'त्यु आयु पूर्ण होने पूर्व भी होजाती है जिसको अकाल मृत्यु कहा करते हैं। . . विशेष वर्णन संग्रहणी सूत्र से समझना चाहिये. .. . : नाम कर्म और उसकी १०३ प्रकृतियां ।
जैसे चित्रकार अनेक प्रकार के चित्र बनाता है. वैसे. ही जिस कर्म के उदय से जीव अपने अनेक नये नये शरीर आदि वनाता है उसको नाम कर्म कहते हैं उसके ४२-६३-और १०३ भेद होते हैं जिनका विवेचन आगे करते हैं।