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________________ (३८). करे उसको कारक सम्यक्त्व कहते हैं, उसमें रुचि रक्खे उसको रोचक सम्यक्त्व कहते हैं उसको संसार में प्रकाश करे उसको दीपक सम्यक्त्व कहते हैं इस प्रकार सम्यक्त्व के अनेक भेद है सो गीतार्थ गुरू महाराज से जानना चाहिये। . . . . . .. अब दर्शन मोहनीय के तीनों भेदों को समझाते हैं..... सम्यक् दर्शन मोहनीय जिसके उदय से वीतराग भगवान् भाषित तत्व ज्ञान पर श्रद्धा अर्थात् सम्यक्त्व हो किंतु बुद्धि की न्यूनता से सूक्ष्म तत्वों की सत्यता में शंका हो. जिससे मिथ्यात्व के पुज संचित होते हों इसको सम्यक् दर्शन मोहनीय कहते है.. ..... .., " मीसान राग दोसो, जिण धम्मे अंत मुह जहा अन्ने। नालिअर दीव मणुणो, मिच्छं जिण धम्म विवरीअं.॥ १६॥. . . . . . . . .: : ..::.:. २ मिश्र मोहनीय । ।. .. मिश्र मोहनीय के उदय से जीवको सर्वज्ञ भापित धर्म पर न तो अभ्यन्तर प्रेम और न द्वेष होता है अर्थात् केवली भाषित वचनों में.जरा भी असत्य नहीं हैं उनके वचनों के अतिरिक्त जगत में और कोई भी हितकारी नहीं हैं ऐसा चित्तमें न तो प्रतिबंध (भाव) होता है और न केवली भापित धर्म से द्वेष होता है. ...
SR No.010822
Book TitleKarm Vipak Pratham Karmgranth
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages131
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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