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सम्यक्त्व का स्वरूप
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न. 8.arti को जैसा श्री तीर्थंकर केवली भगवान् ने बतलाया है कि १ मूलद्रव्य से नित्य, २ पर्याय से अनिल्प, ३ निश्चय से अभिन्न ४ व्यवहार से भिन्न, ५ सामान्य से एक, ६ विशेष से अनेक, ७ ज्ञान से ज्ञेय, ८ क्रिया से हेय और 8 उपादेय इस प्रकार नये निक्षुपे से मिलाकर सापेन अनंत धर्म वाला १ कथंचित् उत्पन्न २ कथंचित् नष्ट और ३ कथंचित् भूत्र इस प्रकार एक ही समय में तीनों ही स्वरूप में पदार्थ होता है ऐसे कुंवली भाषित तत्वज्ञान के वचनों पर रुचि अथवा श्रद्धा हो उसका नाम सस्यवत्व हैं उपरोक्त यतिरिक्त अनेक भेद हैं उनमें से कुछ यहां भी बतलाते हैं १ तत्वार्थ की श्रद्धा हो तो एक विध सम्यक्त्व जानना चाहिये ।
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(अ) निश्चय सम्यक्त्व - आत्मा के शुद्ध ज्ञानादिक परिणाम की, शुद्ध परिणाम आत्मा के स्वरूप को अथवा वीतरांग अंबस्थां के सम्यक्त्व को निश्चय सम्यक्त्व कहते हैं ।
(च) ब्यवहार सम्यक्त्व - सराग अवस्था में जो सम्यक्त्व हो
१ नय सात है उसमें दो मुख्य हैं. : निश्चय और व्यवहार - नयकर्णिका'
२. निदेषा मुख्य चार है, नात स्थापना कृष्प और भाव