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( १४ ) ..६ असम्यक् श्रुत-सर्वज्ञ भाषित तत्वज्ञान के विमुख प्राणी का जो ज्ञान हो वो असम्यक् श्रुत है,।
७ सादि श्रुत-किसी प्राणी को जो नवीन ज्ञान प्राप्त होता हो वो,सादिश्रुत है । द्रव्य, क्षेत्र, काल और भावं की अपेक्षा से जो नवीन ज्ञान होता है वो चार प्रकार का है। द्रव्यसादि, क्षेत्र सादि, काल संदि और भाव सादि ।
८ अनादि श्रुत-जो ज्ञान पूर्व से ही है वह अनादिश्रुत है।
इसपर्यवसित श्रुत-जिस ज्ञान का कभी अंत होजावे वह सपर्यवसित श्रुत अथवा सांत श्रुत है।
१० अपर्य वसित श्रुत-जिस ज्ञान का कभी अंत ही न होवे वह अपयेवसित श्रुत अथवा अनन्त श्रुत है।
११ गमिक श्रुत-एक ही समान बार २ वही आलावा ( शब्द समूह ) आते हैं उनके ज्ञान को गमिक श्रुत कहते हैं ऐसे सूत्र को गमिक सूत्र कहते हैं ऐसे पाठ वारहवें दृष्टिवाद अंग में आते हैं।
१२ अगभिक श्रुत-एक ही समान शब्द समूह वार । नहीं आते हैं उसके ज्ञान को अगमिक श्रुत कहते हैं ऐसे पाठ कालिक सूत्र में हैं। । १३ अंग प्रविष्ठ श्रुत-आचारांग आदि बारह अंग शास्त्रों के ज्ञान को अंग अविष्ठ श्रुत कहते हैं।