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________________ को भारतवर्ष के अधःपतन का कारण बतलाता है तो कोई "ईश्वर कर्तृत्व न मानने से " नास्तिक कहते हैं तो कोई कर्म प्रधानी मानकर पुरुषार्थहीन बतलाते हैं. इसही प्रकार के अनेक आक्षेप हुआ करते हैं इन आक्षेपों को दूर करने के लिये तथा जैन समाज में प्रत्येक स्त्री पुरुष को निज धर्म के सिद्धांतों का उत्तम ज्ञान कराने के लिये तथा संसार के अन्य विविध देशों के विशेषकर भारतवर्ष के जैनेतर जनसमुदाय में जैन धर्म के सिद्धांतों का प्रचार करने के लिये परम आवश्यक है कि जैन धर्म के ग्रन्थों का अनुवाद वर्तमान काल की विविध भाषाओं में विशेषकर भारतीय भाषाओं में प्रकाशित किया जावे और उन ग्रन्थों का खूब ही मुफ्त वा अल्प मूल्य पर प्रचार किया जावे. उपरोक्त उद्देश्य के अनुसार ही कर्मग्रन्थ के प्रथम भाग का हिन्दी भाषान्तर 'इस पुस्तक में पाठकवर्ग की सेवा में उपस्थित किया है। ___ यदि हमारे भ्राता विशेष कर नवयुवक लोग जिनपर कि धर्म तथा समाज की उन्नति निर्भर है जैन धर्म के सिद्धान्तों का पठन पाठन करें तो प्रथम रहस्य मय विषय जैन धर्म का अनेकांतवाद है अर्थात् प्रत्येक कार्य किसी न किसी अपेक्षा से ही होता है इसको जैन धर्म की स्याद्वाद शैली कहते हैं इसके पश्चात् कर्मवाद का रहस्य समझना चाहिये इसही कर्मवाद विषय पर
SR No.010822
Book TitleKarm Vipak Pratham Karmgranth
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages131
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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