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________________ (६५) ... २० अपयश नाम कर्म-जिस कर्म के उदय से जीव की निन्दा लोगों में होती है उसको अपयश नाम कर्म कहते हैं । कीर्ति उसको कहते हैं जो एक दिशा में प्रशंसा होती है और यश उसे कहते हैं जो सर्व दिशा में प्रशंसा होती है। '' त्रस दशक और स्थावर दशक में इतना भेद है कि उस दशक पुन्य से होते हैं और स्थावर दशक पाप से होते हैं दोनो परस्पर विरुद्ध हैं जैसे शुभ और अशुभ-ऊपर दोनों सदशक और स्थावर दशक का साथ ही वर्णन कर दिया है । . नाम कर्म समाप्त हुवा। गोमं दुहुच्चनी, कुलाल इव सुघड मुंभलाईनं, विग्धं दाणे लाभे भोगुव भोगेसु वीरिएअः॥ ५० ॥ गोत्र कर्म के दो भेद । जिस कर्म के उदय से जीव शुभा शुभ जाति कुल में उत्पन्न होता है उसको गोत्र कर्म कहते हैं उसके दो भेद हैं। , .. " . .१. उच्च गोत्र कर्म-जिस कर्म के उदय से जीव उच्च लोकमान्य जाति कुल में जैसे क्षत्रिय काश्यपादिजाति और उग्रादिक कुलमें उत्पन्न होता है उसको उच्चैर्गोत्र:कर्म कहते हैं। २.नीचर्गोत्र कर्म-जिस कसे के उदय से जीव भिक्षुक,
SR No.010822
Book TitleKarm Vipak Pratham Karmgranth
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages131
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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