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________________ (६१) पर्याप्ति कहते हैं। ...... ": .... . ... इन छः पर्याप्ति का आरम्भ एकही समय में एकही साथ होता है प्रथम समय में आहार पर्याप्ति होती है पश्चात अंतमुहूर्त में शरीर पर्याप्ति होती है . . . . . . . ___ पश्चात् औदारिक शरीर वाला थोड़े २: अंतर. से शेष ४ पर्याप्ति पूर्ण करता है वैक्रिय और आहारक शरीर वाले समयर के अंतर में पूर्ण करते हैं इन में दो पर्याप्ति सूक्ष्म है जिससे उनके पूर्ण करने में काल अधिक होता है. जैसे सूत कातने वालों के जने को साथ प्रारम्भ कराया जाये तो मोटा कातने वाले प्रथम कूकड़ी पूरी करेंगे और सूक्ष्म ( बारीक ) कातने वाले अन्त में पूर्ण करेंगे. .. .. .. . . . . . . ६ अपयाप्त नाम कर्म-जिस कर्म के उदय से कितनीक पर्याति पूर्ण किये विना प्रथम ही जीव की मृत्यु होजावे उसको अपर्याप्त नाम कर्म कहते हैं । पत्तेत्राण पत्ते उदएणं अढिमाइ थिरं। नाभुः वरि सिराइ सुहं सुभगाओ सव्वजण इट्टा ॥ ५० ॥ ...७ प्रत्येक नाम: कर्म-जिस कर्म के उदय से जीव को भिन्न ( पृथक् ) औदारिक शरीर प्राप्त होता है. उसको प्रत्येक • नाम कर्म कहते हैं।
SR No.010822
Book TitleKarm Vipak Pratham Karmgranth
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages131
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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