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श्रीमद राजचंद्र प्रणीत मोक्षमाळा.
परमेष्टिने साये नमस्कार होत्रायी पंचपरमेष्टि मंत्र एवो वह ययो. आ मंत्र अनादि सिद्ध मनाय ले; कारण पंचपरमेष्टि अनादि सिद्ध छे. एटले एपांचे पात्री आयरुप नयी, मत्राहयी अनादि छे, अने तेना जपनार पण अनादि सिद्ध छे. एयी ए जाप पण अनादि सिद्ध टरे छे.
प्र०-ए पंचपरमेष्टि मंत्र परिपूर्ण जाणवायी मनुष्य उत्तम गतिने पामे छे एम सत्पुरुषो कहे के ए माटे दमारुं भुं मत छी उ०-ए कहेतुं न्यायपूर्वक छे, एम हुं मानुं छडं.
प्र०–एने कयां कारणथी न्यायपूर्वक कही शकाय ?
उ०- हा॰ ए तमने हुं समजानुं : मननी निग्रहता अ एक तो सर्वोत्तम जगद्भूषणना सत्य गुणनुं ए चितवन छे. तत्त्वयी जोतां बळी अर्हतस्वरूप, सिद्धस्वरूप, आचार्यस्वरूप, उपाध्याय स्वत्प अने साधुस्वरूप एनो विवेकी विचार करवानुं पण ए सृचवन छे. कारण के तेओ पूजना योग्य शायी छे? एम विचारतां एओनां स्वरूप, गुण इत्यादि माटे विचार करवानी सत्पुरुपने तो खरी अगत्य है. हवे कहो के ए मंत्र केटलो कल्याण कारक छे ?
प्रश्नकार — सत्पुरुषो नमस्कार मंत्रने मोनुं कारण कहे छे. ए आ व्याख्यानयी हुं पण मान्य राखुं छडं.
अर्हेन भगवंत, सिद्ध भगवंत, आचार्य, उपाध्याय अने साधु एओनो अकेको प्रथम अक्षर लेतां " असिआउसा"