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परिग्रहने संकोचो.
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दायक के आत्महितैषी थड़ नथी. जेणे एनी हुंकी मर्यादा करी नहीं, ते वहोला दुःखना भागी थया छे.
छ खंड साधी आज्ञा मनावनार राजाधिराज, चक्रवर्त्ती कहेवाय छे. ए समर्थ चक्रवत्तमां सुभुम नामे एक चक्रवर्त्ती थड़ गयो छे. एणे छ खंड साधी लीधा एटले चक्रवत्ती- पदयी ते मनायो; पण एटलेधी एनी मनोर्वाच्छा वृस न थ; हजु ते तरस्यो रह्यो. एटले धातकी खंडना छ खंड साधवा एणे निश्चय कयों, वधा चक्रवत्ती छ खंड साघे छे; अने हुं पण एटलाज साधु तेमां महत्ता शानी ! वार खंड साधवाथी चिरंकाळ हुं नामांकित था; समर्थ आशा जीवनपर्यंत ए खंडोपर मनावी शकीश; एवा विचारथी समुद्रमां चर्मरत्र मूक्युं ; ते उपर सर्व सैन्यादिकनो आधार रह्यो हतो. चर्मरत्नना एक हजार देवता सेवक कहेवाय छे; तेमां प्रथम एके विचार्य के कोण जाणे केटलांय वर्षे आमांयी छूटको थशे ? माटे देवांगनाने तो मळी आवुं एम धारी ते चाल्यो गयो; एवा ज विचारे बीजो गयो; पछी त्रीजो गयो ; अने एम करतां करता हजारे चाल्या गया ; त्यारे चर्मरत्न वूढयुं; अश्व, गज अने सर्व सैन्यसहित मुथुम नामनो ते चक्रवत्ती चूड्यो ; पापभावनामां ने पापभावनामां मरीने ते अनंत दुःखयी भरेली सातमी तमतमप्रभा नर्कने विषे जड़ने पड्यो, जुओ ! छ खंडनुं आधिपत्य तो भोगवनुं रयुं; परंतु अकस्मात् अने भयंकर रीते परिग्रहनी मीतिथी ए चक्रवर्त्तीतुं मृत्यु थयुं, तो पछी वीजा माटे तो