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चार गति.
३३ ननी वेदनाथी अनंतगुणी वेदना जन्मसमये उत्पन्न थाय छे. त्यार पछी बाळावस्था पमाय छे. मळ, मूत्र, धूळ अने नग्नावस्यामां अणसमजथी रझळी रडीने ते वाळावस्था पूर्ण थाय छे; अने युवावस्था आवे छे. धन उपार्जन करवा माटे नाना प्रकारनां पापमां पडवुं पडे छे. ज्यांयी उत्पन्न थयो छे त्यां एटले विषय विकारमां वृत्ति जाय छे, उन्माद, आळस, अभिमान, निग्रदृष्टि, संयोग, वियोग एम घटमा
मां युवावय चाल्युं जाय छे; त्यां वृद्धावस्था आवे छे, शरीर कंपे छे, मुखे लाळ झरे छे. त्वचापर करोचली पडी जाय छे. सुंघ, सांभळ अने देख ए शक्तिओ केवळ मंद धड़ जाय छे. केश धवळ थइ खरवा मंडे छे; चालवानी आय रहेती नयी. हाथमां लाकडी लइ लडथडीओ खातां चालतुं पढे छे. कां तो जीवन पर्यंत खाटले पड्यां रहेवु पढे छे. श्वास, खांसी इत्यादिक रोग आवीने वळगे छे; अने घोडा काळमां काळ आवीने कोळीओ करी जाय छे. आ देहमांयी जीव चाली नीकळे छे. काया हती नहती थइ जाय छे. मरणसमये पण केटली वधी वेदना छे ? चतुर्गतिनां दुःखमां जे मनुष्यदेह श्रेष्ठ तेमां पण केटलां वर्धा दुःख रयां छे! तेम छवां उपर जणान्या प्रमाणे अनुक्रमे काळ आवे छे एम पण नथी. गमे ते वखते ते आवीने कह जाय छे, माटे ज विचक्षण पुरुषो प्रमाद विना आत्मकल्याणने आराधे छे.