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________________ ३२ श्रीमद् राजचंद्र प्रणीत मोक्षमाळा. ताप, वध, बंधन, ताडन, भारवहन ईत्यादिनां दुःखने सहन करे छे. ३. मनुष्यगति-खाद्य, अखाद्य विषे विवेकरहित छे; लज्जाहीन, माता पुत्री साथे कामगमन करवामां जेने पापापापर्नु भान नथी; निरंतर मांसभक्षण, चोरी, परस्त्रीगमन वगेरे महा पातक कर्या करे छे; ए तो जाणे अनार्य देशनां अनार्य मनुष्य छे. आर्य देशमा पणक्षत्री, ब्राह्मण, वैश्य प्रमुख मतिहीन, दरिदि, अज्ञान अने रोगथी पीडित मनुष्य छ, मान, अपमान ईत्यादि अनेक प्रकारनां दुःख तेओ भोगवी रह्यो छे. ४. देवगति-परस्पर वेर, झेर, क्लेश, शोक, मत्सर, काम, मद, क्षुधा आदिथी देवताओ पण आयुष् व्यतीत करी रह्याछे, ए देवगति. ___ एम चार गति सामान्य रूपे कही. आ चारे गतिगां मनुष्यगति सौथी श्रेष्ठ अने दुर्लभ छे, आत्मानुं परमहित-मोक्ष ए हेतुथी पमाय छे, ए मनुष्यगतिमां पण केटलाक दुःख अने आत्मसाधनमां अंतरायो छे. ___ एक तरुण सुकुमारने रोमे रोमे लालचोळ सुया घोंचवाथी जे असह्य वेदना उपजे छ ते करतां आग्गुणी वेदना गर्भस्थानमां जीव ज्यारे रहे छे त्यारे पामे छे. लगभग नव महिना मळ, मूत्र, लोही, परु आदिमां अहोरात्र मूर्छागत स्थितिमा वेदना भोगवी भोगवीने जन्म पामेछे. गर्भस्था
SR No.010820
Book TitleMokshmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParamshrut Prabhavak Mandal
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1962
Total Pages220
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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