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तत्त्वावबोध भाग २. १६१ निग्रंथप्रवचननो जे जे सूक्ष्म वोध छ; ते तत्त्वनी द्रष्टिए नवतत्त्वमां शमाइ जाय छे तेमज सघळा धर्ममतोना सूक्ष्म विचार ए नवतत्वविज्ञानना एक देशमा आवी जाय छे.
आत्मानी जे अनंत शक्तियो ढंकाइ रहीछे तेने प्रकाशित करवा अईत भगवाननो पवित्र बोधछे ए अनंत शक्तियो त्यारे प्रफुल्लित थइ शक के ज्यारे नवतत्व विज्ञानमां पारावार शानी थाय.
मुक्ष्म द्वादशांगी ज्ञान पण ए नवतत्व स्वरुप ज्ञानने सहायरुप छे. भिन्न भिन्न प्रकारे ए नवतत्वस्वरुप ज्ञाननो वोध करेछे एथी आ निःशंक मानवा योग्य छे के नवतत्व जेणे अनंत भाव भेदे जाण्यां ते सर्वज्ञ अने सर्वदशी थयो.
ए नवतत्व त्रिपदीने भावे लेवा योग्य छे. हेय, ज्ञेय अने उपादेय एटले त्याग करवा योग्य, जाणवा योग्य अने ग्रहण करवा योग्य एम त्रण भेद नवतत्त्व स्वरुपना विचारमा रहेला छे.
प्रश्न:-जे त्यागवारुप छे तेने जाणीने करवू शृं? जे गाम न जवू तेनो मार्ग शा माटे पूछयो ?
उत्तर:-ए तमारी शंका सहनमा समाधान थइ शके तेवी छे. त्यागवारुप पण जाणवा अवश्य छे. सर्वज्ञ पग सर्व प्रकारना मपंचने जाणी रह्या छे. त्यागवारुप वस्तुने जाणवान मुलतत्व आछे के जो ते जाणी न होय तो