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१५४ श्रीमद् राजचंद्र प्रणीत मोसमाळा. दाखनो अभाव एटले अखंड, अनुपम अनंत शाश्वत पवित्र मोक्षनी प्राप्ति ए सघळां मारे जाननी आवश्यकता छ?
२. मानना भेद केटला छे एनो विचार कहुं छउं. ए ज्ञानना भेद अनंत छे. पण सामान्य दृष्टि समजी शके एटला माटे सर्वत्र भगवाने मुख्य पांच भेद कया छे, ते जेम छे तेम कहुं छई. प्रथम मति, द्वितीय श्रुत, तनीय अवधि, चतुर्य मनःपर्यव अने पांचमुं संपूर्ण स्वरुप केवळ. एना पाछा प्रतिभेद छे तेनी वळी अतींद्रिय स्वरुप अनंत भंगजाळ छे.
३. शुं जाणवारुप छे? एनो इवे विचार करीए. वस्तुनुं स्वरुप जाणवू तेनुं नाम ज्यारे ज्ञान; सारे वस्तुयो तो अनंत छे, एने कयि पंक्तियी जाणवी? सर्वन यया पछी सर्व दर्शितायी ते सत्पुरुष, ते अनंत वस्तुनुं स्वरूप सर्व भेदे करी जाणे छे अने देखे छे; परंतु तेओ ए सर्वज्ञ श्रेणिने पाम्या कयि कयि वस्तुने जाणवायी? अनंत श्रेणिओ ज्यांमुधी जाणी नयी त्यांमुधी कयि वस्तुने नाणता जाणता ते अनंत वस्तुओ अनंत रुपे जाणीए ? ए शंकानुं समाधान हवे करीए? जे अनंत वस्तुओ मानी ते अनंत भंगे करीने छे. परंतु मुख्य वस्तुत्व स्वरुपे वेनी वे श्रेणिओ छे. जीव अने अजीव. विशेप वस्तुत्व स्वरुपे नवतत्त्व किंवा पद्यनी निमो जाणवा रुप थइ पडे .जे पंक्तिए चढवां चढतां सर्व भावे जणाइ लोकालोक