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१२८ श्रीमद् राजचंद्र प्रणीत मोक्षमाळा.
करीने संसारथी जे त्यागी जेवा छे, जेना वैराग्य अने विवेक उत्कृष्ट छे तेषा पुरुषो पवित्रतामां सुखपूर्वक काळ निर्ग - मन करे छे.
सर्व प्रकारना आरंभ अने परिग्रहथी जेओ रहित थयाछे, द्रव्यथी, क्षेत्रथी, काळथी अने भावधी जेओ अप्रतिबंधपणे विचरे छे, शत्रु-मित्र प्रत्ये जे समान दृष्टिवाळा छे भने शुद्ध आत्मध्यानमां जेमनो काळ निर्गमन थायछे, अथवा स्वाध्याय ध्यानमां जे लीन छे, एवा जितद्रिय अने जितकषाय ते निर्ग्रथो परम सुखी छे.
सर्व घनघाती कर्मनो क्षय जेमणे कर्यो छ, चार कर्म पातळां जेनां पड्यां छे, जे मुक्त छे, जे अनंतज्ञानी अने अनंतदर्शी छे ते तो संपूर्ण मुखीज छे. मोक्षमां तेओ अनंत जीवननां अनंत सुखमां सर्व कर्मविरक्तताथी विराजे छे.
आम सत्पुरुषोए कहेलो मत मने मान्य छे. पहेलो तो मने त्याज्य छे. वीजो हमणां मान्य छे ; अने घणे भागे ए ग्रहण करवानो मारो बोध छे. त्रीजो वहु मान्य छे. अने चोथो तो सर्वमान्य अने सच्चिदानंद स्वरुप छे.
एम- पंडितजी आपनी अने मारी सुखसंबंधी वातचित थइ. प्रसंगोपात ते वात चर्चता जइभुं. तेपर विचार करीभुं. आ विचारो आपने कह्याथी मने बहु आनंद थयो छे. आप तेवा विचारने अनुकूल थमा एथी वळी आनंदमां वृद्धि