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मुखविषेविचार भाग ६. १२७ सत्य छे. ते सन्मार्ग परिणामे सर्वोपाधि, आधि व्याधिथी तेमज सर्व अज्ञानभावथी रहित एवा शाश्वत मोक्षनो हेतु छे.
शिक्षापाठ६६. सुखविषेविचार भाग ६.
धनान्य-आपने मारी वात रुची एथी हुँ निरभिमानपूर्वक आनंद पामु छर. आपने माटे हुं योग्य योजना करीश. मारा सामान्य विचारो कथानुरुप अहीं कहेवानी हुँ आज्ञा लडं छउं.
जेओ मात्र लक्ष्मीने उपार्जन करवामां कपट, लोभ अने मायामां मुंज्ञाया पड्या छे ते बहु दुःखी छे. तेनो ते पुरो उपयोग के अधुरो उपयोग करी शकता नथी. मात्र उपाधिज भोगवे छे, ते असंख्यात पाप करे छे. तेने काळ अचानक लइने उपाडी जाय छे. अधोगति पामी ते जीव अनंतसंसार वधारे छे. मळेलों मनुष्य देह निर्माल्य करी नाखे छे नेयी ते निरंतर दुःखीज छे.
जेओए पोताना उपजीविका जेटलां साधनमात्र अल्पारंभयी राख्यां छे, शुद्ध एक पनीटत्त, संतोष, परात्मानी रक्षा, यम, नियम, परोपकार, अल्पराग, अल्पद्रव्यमाया अने सत्य तेमज शास्त्राध्ययन राखेल छे, जे सत्पुरुषोने सेवेछे, जेणे निग्रंथतानो मनोर्थ राख्यो छे, बहु प्रकारे
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