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मुखविषेविचार भाग ३. १२१ त्यांची नीकळ्यो त्यारे मारां कुटुंयीओ मने रोकी राखवा मंड्यां के तें गामनो दरवाजो पण दीगे नथी, माटे तने जवा दइ शकाय नहीं. तारुं कोमळ शरीर कंइ पण करी शके नहीं; अने तुं त्यां जा अने सुखी था तो पछी आव पण नहीं; माटे ए विचार तारे मांडी वाळवो. घणा प्रकारथी तेओने समजावी, सारी स्थितिमा आवीश त्यारे अवश्य अहीं आवीय. एम वचन दइ जावावंदर हुँ पर्यटने नीकळी पड्यो.
प्रारब्ध पाछां वळवानी तैयारी थइ. दैवयोगे मारी कने एक दमडी पण रही नहोती. एक के वे महीना उदर पोपण चाले ते, साधन रघु नहोतुं. छतां जावामां हुँ गयो त्यां मारी बुद्धिए प्रारब्ध खीलव्यां• जे वहाणमा हुं वेठो हतो ते वहाणना नाविके मारी चंचळता अने नमृता जोइने पोताना शेट आगळ मारां दुःखनी वात करी. ते शेठे मने वोलावी अमुक काममां गोठव्यो; जेमां हुं मारा पोपणयी चोगj पेदा करतो हतो. ए वेपारमा मारुं चित्त ज्यारे स्थिर थयुं त्यारे भारतसाये ए वेपार वधारवा में मयन कयु; अने तेमां फाव्यो. वे वर्षमां पांच लाख जेटली कमाइ थइ. पछी शेठ पासेयी राजी खुशीथी आज्ञा लइ में केटलोक माल खरीदी द्वारिका भणी आववानुं कयु. थोडे काळे त्यां आवी पहोंच्यो त्यारे, बहु लोक सन्मान आपवा मने सामा आव्या हवा. हुं मारां कुटुंबीओने आनंदभावधी जेइ मळ्या. तेओ मारा भाम्यनी प्रशंसा
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