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धर्मना मतभेद भाग १. १०९ उत्तर देवानो छे के ते परमात्मतत्त्व अने तेनी वैराग्यमय भक्तिने जाणता नथी. गमे तेम हो पण आपणे आपणा मूल विचारपर आवईं जोइए, तत्वज्ञानीनी द्रष्टिए आत्मा संसारमा विषयादिक मलिनताथी पर्यटन करे छे. ते मलिनतानो क्षय विशुद्ध भाव जळयी होवो जोइए, अर्हतनां तत्त्वरुप साबु अने वैराग्यरुपी जल बडे, उत्तम आचाररुप पथ्यरपर, आत्मवत्रने धोनार निग्रंथ गुरु छे.
आमां जो वैराग्यजळ न होयतो वीजां वर्धा साहित्यो कंड करी शकतां नथी; माटे वैराग्यने धर्मद् स्वरुप कही शकाय, अहंतप्रणीत तत्त्व वैराग्यज वोध छे, तो तेज धर्म स्वरुप एम गणवू.
शिक्षापाठ ५८. धर्मना मतभेद भाग १.
आ जगत्मा अनेक प्रकारथी धर्मना मत पडेला छे. तेवा मतभेद अनादिकाळयी छे, ए न्यायसिद्ध छे. पण ए मत भेदो कंड कंइ रुपांतर पाम्या जाय छे. ए संबंधी केटलोक विचार करीए.
कंटलाक परस्पर मळता अने केटलाक परस्पर विरुद्ध छे; केटलाक केवळ नास्तिकना पायरेला पण छे. केटलाक सामान्य नीतिने धर्म कहे छे. केटलाक झाननेज धर्म कहे छे, केटलाक अमान एज धर्ममत कहे छ, केटलाक भक्तिने