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१०८ श्रीमद् रामचंद्र प्रणीत मोक्षमाला. शिक्षापाठ ५७.वैराग्य एधर्म-स्वरुपछे,
एक वस्त्र लोहीनी मलिनताथी रंगायुं तेने जो लोहीथी धोइए तो ते उजळु थई शके नहीं; पण वधारे रंगाय छे. जो पाणीथी ए वनने धोइए तो ते मलिनता जवानो संभव छे. आ द्रष्टांतपरथी आत्मापर विचार लइए. अनादिकाळथी आत्मा संसाररुपी लोहीथी मलिन थयो छे. मलिनता प्रदेशे प्रदेशे व्यापी रही छे ! ए मलिनता आपणे विषय शृंगारथी टाळवी धारीए तो टळी शके नहीं. लोहीयी जेम लोही धोवातुं नथी, तेम शृंगारथी करीने विषयजन्य आत्ममलिनता टळनार नथी ए जाणे निश्चयरुप छे. आ जगतमा अनेक धर्ममतो चाले छे, ते संबंधी अपक्षपाते विचार करतां आगळयी आटलुं विचार अवश्यतुं छे के ज्यां त्रिओ भोगववानो उपदेश कर्यों होय, लक्ष्मीलीलानी शिक्षा आपी होय, रंग, राग, गुलतान अने एशआराम करवानुं तव बताव्युं होय त्यां आपणा आत्मानी सत् शांति नथी, कारण ए धर्ममत गणीए तो आखो संसार धर्मर्मतयुक्तज छे. प्रत्येक गृहस्थनुं घर एज योजनाथी भरपूर होय छे. छोकरांछैयां, स्त्री, रंग, राग, तान त्यां जाम्यु पडयु होय छे अने ते घर धर्ममंदिर कहे, तो पछी अधर्मस्थानक कयु? अने जेम वतिए छीए तेम वर्त्तवाथी खोटुं पण शुं ? कोइ एम कहे के पेला धर्ममंदिरमा तो प्रभुनी भक्ति थइ शके छे तो तेओने माटे खेदपूर्वक आटलोज