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राग.
पोताना आत्माने स्थितिस्थापक करीने वोध दीधो के जो! तुं एनी पुत्रीने परण्यो होत तो ए कन्यादानमां तने पाघडी आपत. ए पाघडी थोडा वखतमां फाटी जाय तेवी अने परिणामे दुःखदायक थात. आ एनो बहु उपकार थयो के ए पाघडी वदल एणे मोक्षनी पाघडी बंधावी. एवा विशुद्ध परिणामथी अडग्ग रही समभावी असह्य वेदना सहीने तेओ सर्वज्ञ सर्वदर्शी थई अनंत जीवन सुखने पाम्या. केवी अनुपम क्षमा अने के तेनुं मुंदर परिणाम! तत्त्वज्ञानीओनां वचन छे के, आत्मा मात्र स्वसद्भावमां आववो जोइए। अने ते आन्यो तो मोक्ष हथेलीमांज छे, गजसुकुमारनी नामांकित क्षमा केवो शुद्ध बोध करे छ !
शिक्षापाठ ४४. राग. श्रमण भगवान् महावीरना अग्रेसर गणधर गौतमनुं नाम तमेवहुवार जाण्यं छे. गौतमस्वामीना वोधेला केटलाक शिप्यो, केवळज्ञान पाम्या छतां गौतम पोते केवळज्ञान पाम्या नहोता, कारण के भगवान महावीरनां अंगोपांग, वर्ण, वाणी, रूप इत्यादिपर हजु गौतमने मोह हतो. निर्गथ प्रवचननो निष्पक्षपाती न्याय एवो छे के, गमे ते वस्तुपरनो राग दुःखदायक छ. राग ए मोह अने मोह ए संसारज छ. गौतमना हृदयथी ए राग ज्यां सुधी खस्यो नहीं यां