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समाजवादी व्यवस्थाका विस्तार किया था और इतने थोड़े समय में समूचे देशमें जो औद्योगिक विकास तथा वैज्ञानिक उन्नति की थी और फासिज्मविरोधी युद्धमें जिस लगन के साथ रशियनोंने अपनी पितृभूमि की रक्षा की थी, उससे प्रभावित होकर लोग आशा करने लगे थे कि संसार में शान्तिकी स्थापना और जन-कल्याणका काम सोवियट रूस और उसकी सामाजिक व्यवस्था के द्वारा ही हो सकेगा। यह आशा निर्मूल भी नहीं थी ।
परन्तु युद्धोत्तर कालमें परिस्थिति बदली और रशियाके युद्धकालीन मित्रोंके साथ उसका संघर्ष और प्रतियोगिता बढ़ने लगी । शीतयुद्ध ( कोल्ड वार ) ने जोर पकड़ा। रशिया और अमेरिकामें एटम बम और हाइड्रोजन बम बनना शुरू हो गये । फल यह हुआ है कि आज दोनों देशोंने सारे संसारको सर्वनाशकी विकट परिस्थितिमें लाकर खड़ा कर दिया है।
इन बदली हुई परिस्थितियोंमें मानव समाजका कल्याण चाहनेवाली जनता अब सोवियट रूससे वह आशा नहीं रखती जो दस वर्ष पहले रखती थी। उसकी सारी आशाओंपर पानी फिर गया है और अब यह शंका होने लगी है कि क्या रशियन समाजवाद मानव-समानके लिए अन्ततः कल्याणकारी हो भी सकता है ?
हमें विश्वास है कि साधुचरित धर्मानन्दजी यदि जीवित होते तो वे अपनी इस पुस्तकमें सोवियट रूसके प्रति निकाले हुए उद्द्वारोंमें अवश्य ही संशोधन करते । पर वे अब नहीं हैं, इसलिए हम इस बदली हुई परिस्थितिका सूचन-भर यहाँ कर देते हैं ।
" धर्मानन्द ट्रस्ट' के अधिकारियोंने हमें इस पुस्तकको हिन्दीमें प्रकाशित करनेकी आज्ञा दी और आचार्य काका कालेलकरने इस कार्य में सहायता दी, इसलिए हम उनके प्रति कृतज्ञता प्रकट करते हैं ।
प्रकाशक