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________________ निवेदन " इस पुस्तकमाला के प्रथम पुष्पके रूपमें 'भारतीय संस्कृति और अहिंसा का प्रकाशन हुआ था । उसके लेखक स्व ० धर्मानन्दजी कोसम्बीकी ही यह दूसरी पुस्तक नौवें पुष्पके रूपमें पाठकोंके हाथमें जा रही है । दुःख है कि हम इसे उनके जीते जी प्रकाशित नहीं कर सके। उन्होंने इसकी मूल मराठी प्रतिलिपि भी हमारे पास भिजवाई थी कि हम उसका हिन्दी अनुवाद प्रकाशित करें, परन्तु उस समय यह न हो सका । मराठीमें भी यह सन् १९४९ में, उनके शरीरान्त के बाद, ही निकली और उसके आठ वर्ष बाद अब यह हिन्दी में प्रकाशित हो रही है । ፡ भारतीय संस्कृति और अहिंसा ' के ' श्रमण संस्कृति ' नामक अध्यामें महावीर और पार्श्वनाथकी जो चर्चा की गई है उसीको विस्तृत करके और तत्सम्बन्धी अनेक नये तथ्योंको शामिल करके यह पुस्तक लिखी गई है और बहुत स्वतन्त्रता से लिखी गई है। कोसम्बीजी बहुत ही निर्भीक और साहसी विचारक थे। उन्होंने अपने दीर्घकाल -व्यापी अध्ययन और अनुभवके अनुसार जो कुछ ठीक मालूम हुआ, वह लिखा और विचारकों के लिए एक नया रास्ता दिखाया । 'भारतीय संस्कृति और अहिंसा' के प्रारम्भमें प्रज्ञाचक्षु पं० सुखलालजी संघवी ने जो २० पृष्ठों का विस्तृत 'अवलोकन' लिखा है । पाठकोंसे निवेदन है कि वे उसे अवश्य पढ़ जाएँ; उसमें कोसम्बीजीकी अनेक स्थापनाओंके गुण-दोषोंकी बड़ी स्पष्ट और सहानुभूतिके साथ आलोचना की गई है और वह इस पुस्तकपर विचार करते समय विशेष उपयोगी होगी । यह पुस्तक असे ग्यारह वर्ष पहले लिखी गई थी, जब कि दूसरा महायुद्ध समाप्त हो गया था । उस समय अणुत्रमका आविष्कार हो चुका था और मानव-कल्याणके इच्छुक लोग सोवियट रशियाकी ओर बड़ी आशा से देख रहे थे । तीस वर्षके क्रान्तिकालमें सोवियट रशियाने जिस
SR No.010817
Book TitleParshwanath ka Chaturyam Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmanand Kosambi, Shripad Joshi
PublisherDharmanand Smarak Trust
Publication Year1957
Total Pages136
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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