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________________ सच्चा समाज-धर्म साधुचरित धर्मानन्दजी कोसम्बी सनातनी हिन्दुओंकी ब्राह्मणसंस्कृतिमें पले थे; भगवान् बुद्धकी जीवनी बचपनमें ही पढ़कर बुद्धके उपदेशकी ओर वे आकर्षित हो गये और उन्होंने बहुत परिश्रम करके तिब्बत, लंका, बर्मा और सियाम जैसे देशों में जाकर वहाँका बौद्ध धर्म सीखा और फिर वे बौद्ध विद्याकी परम्पराको स्वदेश वापस ले आये । यद्यपि उन्होंने बौद्ध धर्मकी दीक्षा ली थी; फिर भी बौद्ध धार्मिकोंके वे अन्ध-अनुयायी नहीं बने । बौद्ध विद्याके प्रचारके लिए वे अनेक बार अमेरिका और एक बार रूस भी गये। उस समय उन्होंने वहाँके अर्थमूलक समाज-धर्मका अध्ययन किया । लाला हरदयाल जैसोंके सहवासमें आनेसे समाजवाद और साम्यवादके विषयमें भी उनके मनमें सहानुभूति पैदा हुई । गुजरात विद्यापीठमें आकर वहाँ बौद्ध विद्याका प्रचार करते समय उन्होंने जैन धर्मका भी सहानुभूतिपूर्वक अध्ययन किया । महात्मा गाँधीके सिद्धान्तोंका केवल अध्ययन करके ही वे चुप नहीं बैठे; बल्कि उन्होंने गाँधीजीके आन्दोलनोंमें हिस्सा भी लिया। इस प्रकार मानवीय समाजपर जिन जिन प्रधान विचारों और धार्मिक प्रवृत्तियोंका प्रभाव पड़ा है, उन सबका आस्थाके साथ अध्ययन करके उनपर उन्होंने अपनी स्वतन्त्र प्रज्ञाका उपयोग किया और अपने परिपक्व अभिप्रायोंका निचोड़ दो-तीन ग्रन्थोंमें हमें दिया । बौद्ध-विद्याकी प्राप्ति एवं उसके प्रचारके लिए उन्होंने जो कुछ किया था उसका लेखाजोखा उन्होंने अपने 'निवेदन' और 'खुलासा' नामक दो आत्मचरित्रोंमें पेश किया है। इतने परिश्रमसे प्राप्त की हुई बौद्ध विद्याकी विस्तृत कल्पना देनेके लिए धर्मानन्दजीने मराठीमें कई पुस्तकें लिखी हैं । उन पुस्तकोंपरसे उनकी गहरी विद्वत्ताके साथ ही जन-कल्याणके प्रति उनकी लगन भी प्रकट होती है।
SR No.010817
Book TitleParshwanath ka Chaturyam Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmanand Kosambi, Shripad Joshi
PublisherDharmanand Smarak Trust
Publication Year1957
Total Pages136
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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