SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 73
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रास्तिक और नास्तिक ज्ञानी खटमलने अज्ञानीके इस पलायनको घृणाको दृष्टि से देखा । सूर्यकी ओरसे मुख फेर कर वह देवताका अपमान नहीं करना चाहता था। इतना ही क्यों, सूर्यका ज्ञानी उपासक वह प्रत्यक्ष देवताकी ओर अग्रसर होना ही अपना धर्म समझता था। खाटको पाटोसे उतर कर वह धरतीपर चला-सूर्यको ओर-खुले आँगनकी राह-द्वारकी देहरीके पारघरके बाहर वाले मैदानमें । उस मैदानका इस ज्ञानी खटमलके लिए कोई आदि-अन्त न था। तेज धूपसे उसकी धूल तप उठी थी। ज्ञानी खटमल का शरीर उसके सम्पूर्ण ज्ञान-ध्यान-सहित उसीमें भस्म हो गया !
SR No.010816
Book TitleMere Katha Guru ka Kahna Hai Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages179
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy