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________________ आस्तिक और नास्तिक एक जाड़ेकी रात दो खटमलोंने किसी गृहस्थकी खाटमे जन्म लिया । दोनोंमें एक भक्त और ज्ञानी था दूसरा अज्ञानी । ज्ञानी खटमलने अपने अनजान भाईको बताया कि संसारका सारा काम जिस देवता के प्रतापसे चलता है उसके दर्शन सबेरा होनेपर होंगे । उसकी पूजा प्रत्येक प्राणीको करनी चाहिए । अज्ञानी खटमलपर इस उपदेशका कोई प्रभाव न पड़ा । वह अपने पालक गृहस्थके रक्तका आहार करता रहा । सबेरा हुआ । गृहस्थने खाटको धूपमें डाल दिया। दोनों खटमलों को सूरजकी धूप बड़ी सुखद लगी । ज्ञानी खटमलने अज्ञानीसे कहा - 'देख, मैंने कहा था न कि सूर्यदेव प्रकट होकर गर्मी और प्रकाशका दान करेंगे । दर्शन कर उन्हें प्रमाण कर !' अज्ञानी खटमलने उत्तर दिया- 'मुझे तो सामने कोई सूर्यदेव नहीं दिखाई देते; हाँ, धूपकी मीठी गरमी बड़ी प्यारी लग रही है । मैं तो इसी - का मजा लेने में सन्तुष्ट हूँ ।' 1 'मूर्ख ! कृतघ्न ! नास्तिक !' ज्ञानी खटमलने उसकी भर्त्सना करते हुए कहा - ' जिसकी दी हुई गरमीका तू सुख ले रहा है, उसीके अस्तित्व पर अविश्वास ! नरकमें भी तुझे स्थान न मिलेगा !' 'नरकमें न सही, इस खाटकी मनचाही धूप-छाँहमें तो मेरे लिए स्थान है ही । तुम्हारे और मेरे विश्वास और अविश्वाससे सूर्यके अस्तित्व और उससे या कहींसे भी आने वाली गरमीपर कोई रुकावट नहीं पड़ती ।' अज्ञानी खटमलने कहा और खाटकी खुली पाटीसे बानोंकी छायामें खिसक कर आराम करने लगा
SR No.010816
Book TitleMere Katha Guru ka Kahna Hai Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages179
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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