SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 69
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भोला गाँव बनी नावोंपर वह गांववालोंको उस पार लेजाकर छोड़ देगा और फिर अपने कुटुम्ब-सहित इस उपजाऊ खेतोंवाले गाँवमें चैनसे निवास करेगा। गाँववालोंको अपने उपदेशसे सहमत कर, वह अपनी सभा विसर्जित करके अपने नगरको चला गया। उसी समय एक साधु उधरसे आ निकला। उपदेशक और गाँववालोंकी सारी बात समझकर उसने उनसे कहा'उपदेशकजीने एक बहुत बड़ा काम तुम्हारे सामने रखकर उसे पूरा करनेका उपाय भी जुटा दिया है। लेकिन वह काम अभी तुमने आधा ही समझा है। नदीके पार जानेकी ही नहीं वहाँसे लौटनेकी कठिनाई भी तुम्हारे सामने है।' ___लौटनेकी कठिनाई ! उन्होंने सोचा सचमुच लौटनेकी बात तो उनके लिए और भी अधिक चिन्तनीय होगी। उस पारसे लौटना भी उनके लिए अत्यन्त आवश्यक था, क्योंकि उनके घर और खेत सभी इसी पार थे। अब पार जानेसे अधिक लौटनेकी चिन्ता उन्हे लग गई। लौटनेके लिए फ़सलका शेष आधा अनाज भी उन्हे उपदेशकको देना पड़ेगा-वे सलाह करने लगे। 'मैं तुम्हें लौटनेका एक ऐसा उपाय बता सकता हूँ कि उसके लिए फसलका आधा अनाज तुम्हें न देना पड़े और पहलेका दिया आधा अनाज भी लौट आये।' साधुने कहा । गाँववाले इस साधुके पैरोंपर गिर पड़े। ऐसा उपाय बताकर आप हमें ज़िन्दगीभरके लिए अपना चेला बना लें।' उन्होंने कहा । साधुने उपाय बता दिया, 'तुमलोग नदीके उस पार जाओ ही मत !' वह सारा गाँव उस दिनसे उस साधुका शिष्य बन गया। लेकिन मेरे कथागुरुका कहना है कि किसी गहरे अर्थमें केवल उस गाँवको छोड़कर, दुनियामें नदियों, झीलों और समुद्रोंके किनारे जितने भी दूसरे गांव और नगर बसे हुए हैं, वे सभी उस चतुर उपदेशकको सीखपर जमे हुए हैं और गाँव-गाँव नगर-नगरमें उसके कुटुम्बवालोंकी नावें चल रही हैं ।
SR No.010816
Book TitleMere Katha Guru ka Kahna Hai Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages179
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy