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भोला गाँव किसी नदीके किनारे एक गाँव बसा हुआ था, भोला गाँव । जैसा उस गाँवका नाम था, उसके निवासी भो एकदम भोले-भाले थे।
एकबार किसी दूरके नगरका एक चतुर बढ़ई उस गाँवमें आया।
नदी-किनारे जो लोग उसे दिखाई पड़े उन्हें इकट्ठा कर उसने कहा'तुमलोग बड़े भाग्यवान् हो कि इतनो सुन्दर नदीके किनारे रहते हो । क्या इस नदीके पार भी तुमलोग कभी जाते हो ?'
लोगोंने उसे बताया कि उस नदीके पार वे कभी नहीं जाते। नदीके पार जानेका उनके पास कोई उपाय भी नहीं है।
इसपर उस बढ़ईने उन्हें उपदेश देना प्रारम्भ किया-'बड़े दुःख और शर्मकी बात है कि जिस नदीके एक पारका पानी तुमलोग पीते हो उसके दूसरे पार तुम कभी गये भी नहीं !'
बढई उपदेशक बन बैठा और धीरे-धीरे गांवके सभी लोग उसकी सभामें जुड़ गये।
उनके घर और खेत सभी नदीके इस पार थे और उस पार जानेका उनके मनमें पहले कभी कोई विचार नहीं आया था। उस उपदेशसे प्रभावित होकर उन्होंने उपदेशकसे प्रार्थना को कि वह नदीपार जानेका कोई उपाय उन्हें बताये।
गाँवभरकी फ़सलके आधे अनाजकी कोमतपर उसने गांववालोंको उस पार ले जानेका सौदा ीय कर लिया।
उपदेशकके नगरको झोलमें नावें चलती थीं और वह स्वयं जातिका बढ़ई था ही। उसने मन-ही-मन निश्चय किया कि अपने कुटुम्बियोंको नगरसे बुलवाकर नावें बनानेका कारखाना इस गाँवमें खोल देगा। गाँववालोंके अनाजसे उसके कुटुम्बका अच्छी तरह पालन-पोषण होगा। नई