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________________ ३ मेरे कथागुरुका कहना है राज-व्यवस्थाको जनताने सहर्ष स्वीकार किया। कुछ अन्न-धनिकोंने अपना छिपाया हुआ अन्न भी राज-भंडारमें भेज दिया। भोजनकी कमी और भी घट गई। नये अन्न दिवसका उत्सव राज्यमे विशेष समारोहसे मनाया गया। उसी दिन राज-दरबारमें मृत्युदण्ड प्राप्त प्रधान मन्त्रीके एक पुराने भृत्यने एक परचा राजाके सम्मुख प्रस्तुत किया। उसमे प्रधान मन्त्रीने जो कृषि और अर्थके साथ-साथ मनोविज्ञानका भी एक प्रकाण्ड किन्तु अविज्ञापित अन्वेषक था-अन्न-व्यवस्था-सम्बन्धी गणना इस प्रकार अङ्कित को थी १२ कोटि जनताके लिए आगामी | राज भंडारमें संग्रहीतअन्न दिवस तकके लिए आवश्यक ९ सहस्र तुला १२० सहस्र तुला | अन्न-धनिकोंके भंडारमें छिपाआतंक जनित अतिरिक्त क्षुधाके लिए १० सहस्र तुला विश्यक -३० सहस्र तुला, आतंक जनित अतिरिक्त क्षुधाके अभावसे बचत-३० सहस्र तुला उल्लास-स्फूर्तिके द्वारा आहारमें बचत- १५ सहस्र तुला त्याग और निवेदित उपवास द्वारा व्यवस्थित- ६ सहस्र तुला १५० स० तु. १५० स० तु० मेरे कथागुरुको टिप्पणी है कि उस प्रधान मंत्रीको राजन्याय-द्वारा जो पुरस्कार मिला उसपर उन्हें और उस दिवंगत मंत्रीको तनिक भी आपत्ति नहीं है क्योंकि वह आजकी आर्थिक बुद्धिमत्ता और न्याय-नीतिके
SR No.010816
Book TitleMere Katha Guru ka Kahna Hai Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages179
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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