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________________ ३६ मेरे कथागुरुका कहना है ही कहीं फेंक दिया है | उन्हें आश्चर्य हुआ कि इस पौरुष - चिह्नसे रहित व्यक्तिके पर्वत-शिखरपर पहुँचनेका अभिप्राय ही क्या हो सकता है ! दिनों और महीनोंकी कष्टसाध्य चढ़ाईके पश्चात् जब सभी पहुँचने वाले आरोही पर्वत शिखरपर पहुँच गये तब शिखर - मन्दिर के विस्तृत उद्यान में आयोजित स्नेह-सभामें आगे-पीछे आनेवाले सभी पर्वतारोहियोंका पुनमिलन और परिचय हुआ । वहाँ उन्होंने कुछ आश्चर्यके साथ देखा कि अपने पौरुष- भारको फेंककर तीव्र गतिसे आगे आनेवाले उनके स्वल्पसामर्थ्य साथीको ही मन्दिरके अधिष्ठाताने अपने शक्ति भण्डारका प्रधान अधिकारी नियुक्त कर दिया है । मन्दिर के अधिष्ठाताने अभ्यागतोंका स्वागत करते हुए उनके इस आश्चर्यका भी समाधान कियो । 'इस शिखर - मन्दिर में शक्ति, सौन्दर्य और बुद्धिमत्ता के तीन प्रमुख भण्डार हैं, जिनकी धाराएँ नीचे बसे नगरोंके निर्वाहके लिए यहींसे प्रवाहित होती हैं । आपके जिस स्वजनको हमने अपने शक्ति भण्डारका अधिकारी नियुक्त किया है उसने ही अपने भीतर एक असाधारण एवम् सर्वथा नवीन प्रकारके बलका परिचय दिया है। नवीनतम बलका स्रोत बुद्धिमत्तामें ही है और उस सम्बन्धमे' अधिष्ठाताने क्षणभर रुककर विनोदभरी दृष्टि श्रोताओं पर डालकर कहा -- 'मैं आपसे पूछता हूँ कि यहाँतक पहुँचनेके लिए उन पत्थरके टुकड़ोंको कन्धोंपर उठाकर लानेकी सूझ या सलाह आपको किसने और कब दी । ' और कुतूहल, आश्चर्य एवम् आत्म-लज्जा से मिश्रित भावनाकी एक-एक मुसकान - रेखा सभी आरोहियोंके होठोंपर खिंच गयी !
SR No.010816
Book TitleMere Katha Guru ka Kahna Hai Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages179
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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