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________________ नया बल नगरके चुने हुए हृष्ट-पुष्ट, बलिष्ठ व्यक्तियोंका एक दल पर्वतकी चोटी की ओर अभियान कर रहा था। प्रत्येकके कन्धेपर उसके बलका द्योतक, प्रतीकरूप छोटा या बड़ा एक पत्थर था। इस चढ़ाईमे कुछ लोग अपने आगेवालोंको पोछे छोड़कर आये थे, कुछ अपने पीछेवालोंसे भी पीछे पड़ गये थे । उन सभीका अभिप्राय शीघ्रातिशीघ्र पर्वतको सबसे ऊंची चोटीके चौड़े धरातलपरं बने मन्दिरपर पहुंचना था। चढ़ाई महीनोंकी थी। आखिरकार उस दलके सर्वाधिक बलिष्ठ कुछ व्यक्ति एक दिन पर्वतकी चोटीपर पहुँच गये और उन्हें शिखरपर बने हुए विस्तृत मन्दिरके अधिकारियोंने सत्कार-सम्मानपूर्वक अलग-अलग बँगलोंमें ठहरा दिया। दूसरे चढ़ाकोंके पहुंचनेमे, उनकी चालको देखते हुए, अभी दिनों और महीनोंकी देर थी। उनमेंसे प्रत्येककी चिन्ता थी कि वह किस प्रकार नया बल बटोरकर शीघ्र-से-शीघ्र लक्ष्यपर पहुँच जाय। अपनी इस चिन्ता और चिन्तन-सामर्थ्य के अनुरूप प्रत्येक पर्वतारोही नया बल और नया साहस जुटानेका कुछ-न-कुछ उपचार करता हुआ आगे बढ़ रहा था। राहमें चढ़ाईकी थकान उतारनेके लिए मंज़िल-मंज़िलपर मालिश और स्नान करानेवालोंके शिविर भी लगे हुए थे। ये यात्री आवश्यकतानुसार इनका भी आश्रय लेते थे। एक दिन पर्वत-पथके सभी चढ़ाकोंने कुतूहल-भरी दृष्टिसे देखा कि आरोही दलके बहुत पिछड़े हुए वर्गका एक व्यक्ति तेज़ीके साथ उन्हें छोड़ता हुआ आगे बढ़ रहा है। उसके कन्धेपर उसके बलका द्योतक कोई भार नहीं है और स्पष्टतया यह भारहीनता ही उसकी तीव्रगतिकी सहायिका है। स्पष्ट था कि उसने अपना पौरुष-प्रतीक कन्धेका पत्थर राहमें
SR No.010816
Book TitleMere Katha Guru ka Kahna Hai Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages179
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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