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मेरे कथागुरुका कहना है ___पांचवें दिन फ़क़ीरकी पत्नीने सारा भेद खोलते हुए कहा-'मैने ही उस आदमीको तुम्हारी और परिवारको भूख और तंगीका हाल सुनाकर राजाके पास फर्याद लेकर जानेकी प्रेरणा दी थी।'
फ़क़ीरने अपनी पत्नीके लिए दस हजार दुआएँ ईश्वरके दरबारमें मांगी और उसी प्रकार दस हजार खुशियोंकी भेंट उसके लिए भी मंजूर हो गयी।
राजाको फ़क़ीरकी इन सब दुआओं और उनके फलोंका समाचार मिला तो वह बहुत असंतुष्ट हुआ । फ़क़ीरको उसने अपने दरबारमें हाजिर होनेकी आज्ञा दी। ___'मैंने आपको इतनी बड़ी भेंट अपने पाससे दी उसका शुकराना आपने सिर्फ एक खुशीकी सिफ़ारिश करके अदा किया और बोचके दूतों और कर्मचारियोंको दस-दस गुनी करके दस हज़ार तक खुशियाँ दिलाई ! आपके इस अनुचित व्यवहारके लिए आपको सज़ा क्यों न दी जाय ?' राजाने रोष-भरे स्वरमे कहा। ___'राजा तू भूलता है। तेरी एक खुशीकी सलामती और पायदारीके लिए यह जरूरी था कि मैं तुझसे नीचेवाले अमलों और सिफ़ारिशियोंको सिलसिलेवार दस-दस गुनी दुआएं देता। अगर तुझे यह पसन्द नही है तो मै अभी उन दुआओंका सिलसिला उलट सकता हूँ।' इतना कहकर फ़क़ीरने आँखें बन्दकर ईश्वरके दरबारमें कुछ प्रार्थना की और अपने घरको
लौट आया। ___उसी रात राजाने स्वप्नमें देखा कि अपने पंच मंजिला महलके जिस सबसे ऊपरके मण्डपमें वह सोया हुआ है उसके नीचेकी चार मंज़िलें गायब
हो गयी हैं और अधर में लटके हुए उस मंडपसे नीचे उतरनेका उसके लिए , कोई मार्ग नहीं है। गिरनेके भय और मृत्युको आशंकासे राजा सोते-सोते चिल्ला उठा। सहायताके लिए दौड़कर आये हुए सेवकोंको भेजकर उसने उसी समय फ़क़ीरको बुला भेजा।