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दान और दुआ एक ग़रीब फ़क़ीरको राजाने दस हज़ार अशर्फियोंकी थैली भेंट स्वरूप भेजी।
फ़क़ीरने ईश्वरके दरबारमें राजाके लिए दुआ मांगी। उसी रात ईश्वरका दूत राजाके पास गया और उससे कहा कि ईश्वरने फ़क़ीरको दुआसे एक खुशीको बख्शीस तुम्हारे लिए मंजूर की है।
दूसरे दिन राजाका मन्त्री फ़क़ीरके पास गया और बोला-'अगर मैं दस हज़ार अशर्फियोंकी भेंट देनेकी सिफारिश राजासे न करता तो वह भेंट तुम्हारे पास कभी न पहुँचती।'
फ़क़ीरने मन्त्रीके लिए ईश्वरके दरबार में दस दुआएं मांगी। उसी रात ईश्वरके फ़रिश्तेने मन्त्रीके पास आकर बताया कि ईश्वरने तुम्हारे लिए दस खुशियोंकी भेंट मंजूर की है।
तीसरे दिन राजाका दरबान फ़क़ीरकी कुटियामें गया और बोला'अगर मैं राजाके दरबारमें उस आदमीको, जो आपकी तंगी-ग़रीबीका हाल राजाको सुनाने आया था, न जाने देता तो वह भेंट आपको कभी नहीं मिल सकती थी।'
फ़कीरने दरबानके लिए ईश्वरके दरबारमें सौ दुआएं मांगी। उसी रात उसी तरह ईश्वरके फ़रिश्तेने उसके पास आकर उसके लिए ईश्वरके दरबार में मंजूर हुई सौ खुशियोंकी खुशखबरी दी। __ चौथे दिन दरबानका कहा हुआ वह आदमी स्वयं फ़क़ीरके पास आया और उसने अपने अहसानकी बात कह सुनाई। फकीरने उसके लिए एक हजार दुआएं मांगी और उसी रात ईश्वरके फ़रिश्ते-द्वारा ईश्वरके हाथों एक हजार खुशियोंको मंजूरीकी खबर उसे भी मिल गयी।