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मेरे कथागुरुका कहना है
जानती है कि राजकुमारीकी यह खोज इतनी आत्मीय अतः समर्थ थी वि कालान्तरमें मृत्युके देवता यमराजके हाथोंसे भी वह उसे मुक्त करा ला थी। और, जैसा राजकुमारीने अपनी अनुचारिकाओंसे कहा था, क्य आज हम सबके सम्बन्धमें यह सत्य नहीं कि हम अपनी खोई हुई कुछ एक निर्जीव वस्तुओंकी खोजमें स्वयं इतने खो गये है कि आँखों-दीर्ख अधिक मूल्यवान् एवं आराध्य वस्तुकी ओर हमारा ध्यान नहीं जाता ?