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________________ धनीकी खोजमें , अपनी निर्धनतासे तंग आकर मैने अपने नगरके ज्योतिषीकी शरण ली । उसने अपने सबसे बड़े संहिता ग्रन्थका अनुशीलन करके मुझे बताया कि पिछले जन्म में मैं एक बहुत धनवान् व्यक्ति था और अपने एक प्रशंसक प्रियजनके पास मैंने बहुत कुछ उसकी सहायताके अभिप्राय से ही, एक सहस्र स्वर्ण मुद्राएँ जमा कर दी थीं । उस व्यक्तिका इस बार एक अत्यन्त समृद्ध व्यक्ति के रूपमे पुनर्जन्म हो चुका है और यदि मैं उसके सम्मुख पहुँच जाऊँ तो निःसन्देह उपर्युक्त धन राशिको भरपूर ब्याज और सम्मानके साथ मुझे लौटाने की प्रेरणा उसके मनमे उत्पन्न हो जायेगी । ज्योतिषीसे आवश्यक संकेत लेकर मैं उस व्यक्तिको खोजमें निकल पड़ा । उसने मुझे बता दिया था कि उसका भवन और भवन-द्वार अमुकअमुक प्रकारका होगा । किन्तु मैं इतना अशिक्षित और अयावहारिक तो नहीं था कि वैसे व्यक्तियो के सम्मुख पहुँचकर अपना मन्तव्य और अभिप्राय खुले शब्दोंमे कहकर जगह-जगह अपनी हँसी कराऊँ । उनके सम्मुख आनेके लिए मुझे पहले अपना कुछ दिखावटी अभिप्राय बताना पड़ेगा, यही सोचता हुआ मैं अपनी यात्रापर निकल पड़ा । चलते-चलते ज्योतिषीके बताये आकार-प्रकारका एक भवन और भवन-द्वार मुझे दिखायी पड़ा । प्रहरीने मुझे भीतर जानेसे रोका और उसके पूछनेपर मैंने बताया कि मैं उस भवनके मालिक से मिलना चाहता हूँ । 'किसलिए मिलना चाहते हो ?' प्रहरीने पूछा । उत्तर सोचनेमे मुझे कुछ विलम्ब लगा । प्रहरीने स्वयं ही फिर पूछा : 'तुम कुछ आर्थिक सहायता चाहते हो ?'
SR No.010816
Book TitleMere Katha Guru ka Kahna Hai Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages179
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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