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सातवाँ अध्याय
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सातवाँ अध्याय
अजुन
(रोला) माधव तुमन सर्व--जाति-समभाव सिग्वाकर । नरनारी के योग्य न्याय्य सम्बन्ध दिग्वाकर ।। जाति -पाँति का भूत भगाया मेरे सिरस । पक्षपात की जड़ उखाड़ दी तुमने फिरसे ॥१॥
नरनार्ग का पक्षपात अब क्या आवेगा । कुल कुटुम्ब का मोह यहां क्यों दिग्वलांवगा। पनपेगा समभाव बनेगा हृदय विरागी ।
बनकर मैं स्थितिप्रज्ञ बनूंना मच्चा त्यागी ॥२॥ पक्षपात को छोड़ दिया है मैंने माधव । नहीं रहा अब शेष किसी से मुझ मोह लव ।। लेकिन कहदो पाप-पुण्य-समभात्र करूँ क्या । समभावी बन कहो जगतकं प्राण हमें क्या ॥३॥
सब धर्मो में मुख्य अहिंसा धर्म बताया । पर है हिंसा-कांड यहां पर सन्मुग्व आया ।।