________________
पाँचवाँ अध्याय
[ २७
पाचवाँ अध्याय
अजुन
[पीयूषवर्ष] धन्य हे माधव तुम्हें ज्ञानी तुम्हीं । हो तृषातुर के लिये पानी तुम्हीं ॥
अन्ध--जनकी आँखके तारे तुम्हीं ।
दीन हीन अनाथके.प्यारे तुम्हीं ॥१॥ मोह से पीड़ित अखिल संसार है । गोक चिन्ता तापकी भरमार है ।। ___ बह रही है यह विषैली सी हवा ।
रोग बढ़ता ही गया ज्यों की दवा ॥२॥ है यहां कर्मण्यता मारी हुई। है श्रुति-स्मृति भी यहाँ हारी हुई ॥
यत्न हैं अब हो चुके सारे मुधा ।
पर पिलाई आज है तुमने सुधा ॥३॥ अब बनेगा स्वर्ग यह संसार भी। अब यहां निर्मोह होगा प्यार भी ।