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कृष्ण-गीता वर भी निर्वैर--सा होगा यहाँ ।
त्याग की जड़ता रहेगी अब कहाँ ॥४॥ है दवा अनुपम तुम्हारी हे सखे । युक्तियाँ कल्याणकारी हे मवे ॥
पर तुम्हे है एक कठिनाई यहां
रोग ह शतान का भाई यहाँ ।.५।। पा रहा अनुपम तुम्हारा प्यार हूँ। और औषध के लिये तैयार हूँ ॥
पर कहूँ क्या मै कि माहागार हूं ।
जन्मजन्मो का विकट बीमार हूं ॥६॥ आ रहे सन्देह के चक्कर मुझे । कटुकमा है दूध गुड़ शक्कर मुझे ॥
बढ़ रहा चिन्ता अनल का ताप है ।
बोलना भी आज बात-प्रलाप है ॥७॥ पर मिला जब वैद्य है तुमसा मुझ । रोग की चिन्ता भला है क्या मुझे ॥
हो परेशानी तुम्हें मैं क्या करूं ।
क्यो न सब मन्दह में आगे धरूं ॥८॥ जो कही स्थिति-प्रज्ञकी तुमने कथा । वह करेगी दूर जगकी सब व्यथा ॥
मार्ग है अनुपम सुखों का गेह है। किन्तु पदपद पर मुझे सन्देह है ॥९॥