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कृष्ण-गीता
दूसरा अध्याय
.. यों जब कल्पित पाप से हुई पार्थ को भीतिः । लगे सिखाने कृष्ण तब कर्मयोग की नीति ॥१॥
गीत २
अर्जुन झूठी नातेदारी । दुनिया है बाज़ार, स्वार्थ के हैं सब ही व्यापारी ।
अर्जुन झूठी नातेदारी ॥२॥ किसको कहता है भाई तू, किसको कहता तात । किसकी सुनता कौन ? यहाँ है अपनी अपनी बात ।।
है झूठी नाते की यारी । ___ अर्जुन झूठी नांतदारी ॥३॥ वह क्या नातेदार, स्वार्थ के लिये हमें दे छोड़ । अन्यायी बन जाय प्रेम का भी बन्धन दे तोड़ ॥
है जो कोरा स्वार्थ-विहारी ।
____ अर्जुन झूठी नातेदारी ॥४॥ जो है त्यागी गुण-अनुरागी है वह नातेदार । विश्व-मित्र जो गुण-पवित्र जो सेवा का अवतार ॥
दुखिया दुनिया जिसको प्यारी । अर्जुन झूठी नातेदारी ॥५॥