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पहिला अध्याय
लाखो आंखो से यहाँ निकलेगी जलधार ।
होगा जग में जल-प्रलय, भुवन भस्म हो जायगा, होगा आहो से भर जायगा, यह सारा ब्रह्मांड || ३६॥ भवन भ्रष्ट हो जायँगे, नगर नरक के धाम |
क बनेंगे या यहाँ, निशिदिन आठों याम ॥ ३० ॥ क्षमा करो माधव मुझे, करदो युद्ध-विराम ।
प्राग जायँ होऊँ न पर मैं जगमें बदनाम ||३८|| द्रुतविलम्बित
हृदय के सब भाव निचोड़ के 1
वेगा संसार || ३६॥ लंका-कांड ।
रख दिये ममतावश जोड़के | अति विपाद-भरा मुँह मोड़के | अनुप छोड़ दिया दिल तोड़के ॥३९॥
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