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একাত্যায়
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महामहिम कलिकालसर्वज्ञ आचार्यश्री हेमचन्द्रसूरीश्वरजी म. द्वारा रचित महामूल्य योगशास्त्र का हिन्दी-अनुवाद धर्मप्रेमियों के समक्ष प्रस्तुत करते हुए हमें अतीव हर्ष हो रहा है।
यपि स्वोपशवृत्ति-सहित योगशास्त्र का गुजराती में अनुवाद विभिन्न संस्थाओं की ओर से प्रकाशित हुआ है। हिन्दी में भी मूलश्लोक के अर्थसहित कई पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं, किन्तु मूलश्लोक और उन पर विस्तत संस्कत-व्याख्या के समग्र हिन्दी अनवाट से ससज्जित. शद सम्पा से समलंकृत यह महान् अन्य प्रथम ही होगा। इसका सम्पूर्ण हिन्दी-अनुवाद मुनिश्री पद्मविजयजी ने तीन साल के अनवरत कठोर परिश्रम से किया है। उनका यह बहुमूल्य प्रयास सचमुच जनसाहित्य-सेवा में चार चांद लगाने वाला है। उनके इस अदम्य पुरुषार्थ से जनसमाज उपकृत रहेगा। इस विशालकाय ग्रन्थरत्न को सर्वाङ्ग-सुन्दर बनाने में पण्डितप्रवर, अनुभवी मुनिश्री नेमिचन्द्रजी म. का पूर्ण सहयोग मिला है। जिन्होंने अत्यन्त परिश्रम से इसका आद्योपान्त संशोधन-सम्पादन किया है। हम उनके इस उपकार के लिए अतीव कृतज्ञ हैं और भविष्य में भी उनसे साहित्यसेवा की आशा करते हैं ।
श्री विष्णु प्रिटिंग प्रेस के मालिक, श्री रामनारायणजी मेड़तवाल के भी हम अत्यन्त कृतज्ञ हैं; जिन्होंने मुद्रणसम्बन्धी कार्य को शीघ्र एवं सुन्दरता के साथ सम्पन्न किया । उन सभी उदार धर्मप्रेमियों को भी हम बहुत धन्यवाद देते हैं, जिन्होंने (उनकी सूची अन्यत्र दी गई है। ज्ञानाराधना समझ कर योगशास्त्र के प्रकाशनव्यय में अर्थसहयोग दिया है । योगशास्त्र के प्रकाशन में शात-अज्ञात जिन-जिन भाइयों का सहयोग मिला है, उसके लिए धन्यवाद ! खासतौर से किशनलालजी, रामधनजी तथा श्री अशोषकुमार ने इसकी प्रेसकॉपी करने में जो सहयोग दिया है, उसे भुलाया नहीं जा सकता।
आशा है, सुश धर्मप्रेमी स्वाध्यायोजन इस प्रन्थ राज से लाभ उठायेंगे, अपना जीवन सफल बनायेगे, और आत्मकल्याण के पथ पर आगे बढ़ेंगे तो हम अपना प्रयास सार्थक समझेंगे। इसी मंगलकामना के साथ सं० २०३० दीपावलीपर्व
निवेदक म. महावीर का २५०० वा.
मंत्री, श्रीनिर्ग्रन्थमाहित्य प्रकाशनसंघ पवित्र निर्वाण दिवस
दिल्ली-६