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समर्पण
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जिन्होंने अपना सर्वस्व जीवन गुरु के कार्यों में अपित कर दिया. अपना नामोनिशान तक भी न रखा, जिनके मन में अपने गरु के प्रति सदा समपंणभाव था, रोम-रोम में गुरु का रटन था, अपने उन आराध्य गुरुदेव, भारतदिवाकर, पंजाबकेसरी, जेनाचार्य श्रीमद्विजयवल्लमसूरीश्वरजी महाराज के चरणों में अनन्यसेवक की तरह (चित्र में) विराजमान एवं उनके हो यथारूप में पट्टप्रभाकर, उन मरघरवेशोद्धारक श्रीमद्विजयललितसूरीश्ववरजी महाराज साहब के पुनीत कर-कमलो में सादर भक्तिभावपूर्वक स्मतिरूप यह योगशास्त्र' सपित
करता हूँ।
-चरणरज पद्मविजय इतर EEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEE