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________________ 没婆娑婆娑婆婆娑婆娑婆婆娑婆娑婆婆淡淡※※※※※※※※※必示 समर्पण gain RER ' TENDE UncaA73 . जिन्होंने अपना सर्वस्व जीवन गुरु के कार्यों में अपित कर दिया. अपना नामोनिशान तक भी न रखा, जिनके मन में अपने गरु के प्रति सदा समपंणभाव था, रोम-रोम में गुरु का रटन था, अपने उन आराध्य गुरुदेव, भारतदिवाकर, पंजाबकेसरी, जेनाचार्य श्रीमद्विजयवल्लमसूरीश्वरजी महाराज के चरणों में अनन्यसेवक की तरह (चित्र में) विराजमान एवं उनके हो यथारूप में पट्टप्रभाकर, उन मरघरवेशोद्धारक श्रीमद्विजयललितसूरीश्ववरजी महाराज साहब के पुनीत कर-कमलो में सादर भक्तिभावपूर्वक स्मतिरूप यह योगशास्त्र' सपित करता हूँ। -चरणरज पद्मविजय इतर EEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEE
SR No.010813
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmavijay
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year1975
Total Pages635
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size48 MB
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