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चांगदेव को दीक्षा देने के लिए सहर्ष अपनी अनुमति दे दी । लगभग ८-९ वर्ष की उम्र में विक्रम संवत् १९५४ में चांगदेव को गुरुदेव ने दीक्षा दी, मोमदेव नाम रखा। गुरुदेव की कृपा से सोमदेव मुनि सर्वशास्त्रों में पारंगत हुए । उनकी योग्यता देख कर आचार्यश्री देवचन्द्रसूरि ने संवत् ११६६ में सोमदेव मुनि को २१ वर्ष की उम्र में आचार्यपद दिया, और उनका नाम रखा-हेमचन्द्राचार्य ।
आचार्य बनने के पश्चात् हेमचन्द्राचार्य ने गुजरात की राजनीति को एक नया मोड़ दिया। गुजरात के तत्कालीन राजा सिद्धराज जयसिंह का उत्तराधिकारी वे कुमारपाल को बनाना चाहते थे। इसके पीछे एक कारण यह था कि कुमारपाल आचार्यश्री के उपकारों से उपकृत था, दूसरे, वे गुजरात में अहिंसा के कार्य करवाना चाहते थे ; तीसरे, गुजरात में जैनधर्म के सिद्धान्तों का जनता में प्रचार-प्रसार करना था। कुमारपाल के राजा बनने पर इन सब कार्यों में सफलता मिली। पूर्वोक्त प्रन्थों का लेखन भी हुआ। कुमारपाल राजा को शव से परमाहत और धर्मपरायण बनाने का श्रेय आचार्यश्री को ही था।
___आचार्यश्री ने समय-समय पर गजा कुमारपाल को धर्मप्रेरणाएं दी हैं, और धर्म-विमुख मार्ग पर जाने से बचाया है । आचार्यश्री के विपुल साहित्य-सर्जन से प्रभावित हो कर राजा कुमारपाल एवं तत्कालीन विद्वान श्रावकों व राजाओं ने इन्हें 'कलिकालसर्वज्ञ' पर प्रदान किया।
आचार्यश्री की साहित्य-सर्जना उन्हें अमर बना गई है। मैं पूज्य आचार्यश्री की अनेक कृतियों पर मुग्ध हूं। मैंने आपके द्वारा रचित योगशास्त्र पढा । मुझे इसकी विशाल स्वोपज्ञवृत्ति देख कर अन्तःस्फुरणा हुई कि क्यों नहीं, इस विशाल व्याख्यासहित योगशास्त्र का हिन्दी-अनुवाद प्रस्तुत किया जाय ; जिससे आमजनता पू० आचार्यश्रीजी म. के अनुभवयुक्त वचनों से लाभान्वित हो सके । मेरे द्वारा किए गए हिन्दी-अनुवाद के साहस में विद्ववर्य समन्वयवादी विचारक मुनिश्री नेमिचन्द्रजी महाराज का मुयोग मिल गया । इस ग्रन्थ के संशोधन एवं सम्पादन में उनके सहयोग से मैं इस योगशास्त्रको हिन्दी-अनुवाद-सहित सुज्ञ पाठको के समक्ष प्रस्तुत कर सका हूं। ग्रंथ के अनुवाद में दृष्टिदोष से, अमावधानी से कोई सिद्धान्तविरुद्ध बात लिखी गई हो तो सुज्ञ पाठक मुझ क्षमा करेंगे। कोई महानुभाव मुझे इसमें भूल सुझायेगे तो मैं उमे सहर्ष स्वीकार करूंगा।
आशा है, धर्मप्रेमी पाठक इस ग्रन्थराज से अधिकाधिक लाभ उठा कर आत्मविकास करेंगे ; इसी शुभाकांक्षा के साथ ।
जैन उपाश्रय भाणवड़ (जामनगर, सौराष्ट्र)
-मुनि पविजय संवत् २०३० विजयादशमी ता० २५-१०-७४