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योगशास्त्र : प्रथम प्रकाक
देव और दानव के आसन को कंपित करने वाले व नारकी व जीवों को भी क्षणभर सुखमय बनाने वाले, प्रभु का सुखकारक जन्म हुआ।
उस समय छप्पन दिक्कुमारियों ने सूतिकर्म किया। तत्पश्चात् मौधर्मेन्द्र जन्माभिषेक करने के लिये मेरुपर्वत के शिखर पर ले गए । जगदगुरु प्रभु को गोद में ले कर वे मिहासन पर बैठे । उस समय भक्ति से कोमलहृदय इन्द्र को शंका हुई कि इतने पानी का भार स्वामी किस तरह सहन कर सकेगे ? इस शंका को दूर करने के लिये प्रभु ने दाहिने पैर के अंगूठे से सहजभाव से ज्यों ही मेरुपर्वत को दबाया, त्यों ही उसके शिखर इस प्रकार झुकने लगे, मानो प्रभु को नमस्कार करते हों। अथवा वे सब पर्वत इस तरह चलायमान हो गए, मानो भगवान् के पास आना चाहते हों। समुद्र इस प्रकार उछलने लगा, मानो स्नात्र-महोत्सव करना चाहता हो। पृथ्वी एकाएक ऐसे कांपने लगी, मानो नृत्य करने की तैयारी कर रही हो।
'अरे, यह क्या हुआ ?' यों विचार करते ही इन्द्र ने अवधिज्ञान प्रयुक्त करके भगवान् के शरीरबल की अपेक्षा आत्मबल का सामर्थ्य जान कर प्रभु से कहा--"स्वामिन् ! मुझ-सा मामूली व्यक्ति आपके इस महान् प्रभाव को कैसे को जान सकता है ? अतः मैंने जो विपरीत विचार किया उसके लिये क्षमा चाहता हूँ।" यों कह कर उसने प्रभु को नमस्कार किया। फिर आनन्दपूर्वक बाजे बजने लगे। इधर सभी इन्द्रों ने मिल कर पवित्र तीर्थों के सुगन्धित जल से प्रभु का अभिषेक-महोत्सव किया। उस अभिषेक-जल को देवों ने, असुरों ने तथा भवनपतिदेवों ने बार-बार शिरोधार्य किया और सभी पर उसे छोटा। प्रभु के स्नानजल से स्पृष्ट मिट्टी भी वन्दनीय बन गई; क्योंकि महापुरुषों की संगति से छोटा व्यक्ति भी गौरव प्राप्त कर लेता है । तत्पश्चात् सौधमेन्द्र ने प्रभु को ईशानेन्द्र की गोद में बिठा कर स्नान कराया और उनकी अष्टप्रकारी पूजा करके आरती उतार कर स्तुति की।
हे (भावी) अरिहन्त भगवन् ! स्वयंबुद्ध, ब्रह्मा, तीर्थकर, धर्म के आदि करने वाले, सर्वपुरुषों में उत्तम आपको नमस्कार हो । हे लोक-प्रकाशक, लोकोद्योत करने वाले, लोक में उत्तम, लोक के स्वामी, विश्व के जीवों का हित करने वाले, आपको नमस्कार हो । पुरुषों में श्रेष्ठ, पुडरीक कमल के समान सुख देने वाले, पुरुषों में सिंह के समान, पुरुषों में अद्वितीय गंधहस्ती के समान प्रभो ! आपको नमस्कार हो । श्रुतज्ञानरूपी चक्षु के दाता । भयरहित करने वाले ! सम्यक्त्व देने वाले, मोक्षमार्ग बताने वाले, धर्म को देने वाले, धर्म का उपदेश देने वाले, भयभीत जीवों को शरण देने वाले आपको नमस्कार हो । हे धर्म के सारथी ! धर्म की प्रेरणा देने वाले, धर्म के श्रेष्ठ चक्रवर्ती, छद्मस्थता से रहित, सम्यग्-ज्ञानदर्शनधारक, रागादि शत्रुवों को जीतने वाले और दूसरे जीवों को जिताने वाले, संसाररूपी समुद्र से तरने वाले और अन्य जीवों को तारने वाले, स्वयं कर्मपाश से मुक्त और दूसरों को मुक्त करने वाले, स्वयं सब पदार्थों को जानने वाले और दूमरों को बताने वाले आपको नमस्कार हो । हे सर्वज्ञ ! हे स्वामिन् ! सब पदार्थों को देखने वाले, अतिशय के अधिकारी, आठ कमों को चूर्ण करने वाले. हे भगवन् ! आपको नमस्कार हो । उत्तम पुण्यबीज बोने के लिये क्षेत्ररूप, उत्तमपात्र, तीर्थ, परमात्मा, स्यावाद के प्ररूपक, वीतरागमुने ! आपको मेरा नमस्कार हो । पूज्यों के भी पूज्य, महापुरुषों से भी महान्, आचार्यों के भी आचार्य, बड़ों के भी बड़े, हे भगवन् ! आपको नमस्कार हो । केवलज्ञान से विश्व में व्याप्त, योगियों के स्वामी, योग के धारक, स्वयं पवित्र और दूसरों को पवित्र करने वाले, अनुनर श्रेष्ठपुरुप ! आपको नमस्कार हो। योगाचार्य, कर्ममल को निर्मल करने वाले, श्रेष्ठ, अग्रगण्य, वाचस्पति, मंगलस्वरूप हे