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श्री सर्वज्ञदेवको नमस्कार हो
प्रवचनका उपोद्घात
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यह पमनन्दी पंचविंशतिका नामक शास्त्रका सात अधिकार चा सारा आत्माके मानन्दमें झूलते और वन-जंगलमें निवास करते वीतरागी दिगम्बर मुनिराज श्री पद्मनन्दी स्वामीने लगभग ९०० वर्ष पहले इस शासकी रचना की थी। इसमें कुल छब्बीस अधिकार हैं, उनमेंसे सातवाँ " देशवत-उद्योतम" नामका अधिकार चल रहा है। मुनिदशाकी भावना धर्मीको होती है, परन्तु जिसके ऐसी स्शा न होसके यह देशवतरूप श्रावकके धर्मका पालन करता है। उस श्रावकके भाव कैसे होते हैं, उसको सर्वशकी पहचान, देव-शास्त्र-गुरुका बहुमान आदि भाव कैसे होते हैं, आत्माके भानसहित रागकी मन्दनाके प्रकार कैसे होते हैं वे इसमें बताये गये हैं। इसमें निश्चय-व्यवहारका सामंजस्यपूर्ण सुन्दर वर्णन है। यह अधिकार जिज्ञासुओंके लिए उपयोगी होनेसे प्रवचनमें तीसरी बार चल रहा