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________________ पंचम पिण्डेषणा अध्ययन (१९) बोहा - बाधा ले मल-मूत्र को, गोचरि काज न जाय । ___ उपज, लखि निरदोस पल, तज सु मायसु पाय ॥ मर्ष-गोचरी के लिए गया हुआ साधु मल-मूत्र की बाधा न रखे। (मलमूत्र की बाधा से रहित होकर के गोचरी के लिए जावे। फिर भी यदि कदाचित् मल-मूत्र की बाधा आ जाय तो) प्रासुक स्थान को देख, उसके स्वामी की अनुमति लेकर वहां मल-मूत्र का त्याग करे। (२०) बोहा-लघु दुवार कोठा तज, अंधकार जहं छाय । .. कठिन प्रानि को पेलनो, जहां दोठि नहिं जाय । अर्थ-जहां चक्षु का विषय न होने के कारण प्राणी भली भांति देखे न जा सके, ऐसे बहुत नीचे लघु द्वार वाले अन्धकार पूर्ण कोठे में जाकर गोचरी लेने का त्याग करे। (२१) बोहा-जा कोठे में कुसुम अरु, बीज बीखरे होंय । गीलो, अब हो को लिप्यो, देखि छोडिये सोय ॥. अर्ष-जिस कोठे में या कोठे के द्वार पर पुष्प-बीज आदि विखरे हुए हों, उसे तथा तत्काल के लिये हुए गीले मकान को देख कर मुनि वहां जाने का त्याग करे । (२२) दोहा-अज बालक बछरा सुनी, रहे जु कोठे बैठ । तिनहि लंधि वा दूर करि, संजति तहां न पैठ॥ अर्थ-जिस कोठे के द्वार पर भेड़-बकरी, बालक, कुत्ता, बछड़ा हो, अथवा इसी प्रकार का कोई दूसरा जानवर हो तो उन्हें उल्लंघन करके या हटाकर साधु घर में प्रवेश न करे। (२३) बोहा-लखे नहीं अति लीन है, तक दूरतें नाहि । खिले दृगनि देख न कछु, अरु' अदीन निकसाहि ॥ १ पाठान्तर-'विन देखे निकसाहि' ।
SR No.010809
Book TitleAgam 42 Mool 03 Dashvaikalik Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMishrimalmuni
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year
Total Pages335
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_dashvaikalik
File Size13 MB
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