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अष्टम आचार-प्रणिधि अध्ययन
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दोहा- बैठे नहिं वन गहन विच बीज हरित पं जाय ।
उबग उत्तिग हु पनक पै नहिं कदापि ठहराय ॥ अर्ष-मुनि गहन वनों में, वन निकुजों में, बीजों पर, हरियाली पर, जलव्याप्त भूमि पर, उत्तिग (सर्प के छत्राकार वाली वनस्पति) पर, पनक (अनन्तकायिक काई, लीलन-फूलन) पर खड़ा न हो, न बैठे और न सोवे ।
(१२) बोहा- जंगम जीव हनै नहीं, वचन करम करि कोय ।
सब जीवन में वंड विनु, लखे विविध जग सोय ॥ - अर्ष-मुनि वचन और काय से त्रस प्राणियों की हिंसा न करे । सब जीवों के घात से दूर रहकर जगत के सर्व प्राणियों को अपने समान देखे ।
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बोहा- जिनहिं जानि 'संजति' बने, जीवदया अधिकारि ।
बैठे ठहरे सोवही, सूक्षम आठ निहारि ॥ अर्ष-संयमी मुनि आठ प्रकार के सूक्ष्म शरीर वाले जीवों को देखकर अर्थात् उनका बचाव कर बैठे, खड़ा हो और सोवे। इन आठ प्रकार के सूक्ष्म शरीर वाले जीवों को जानने पर ही कोई मनुष्य सब जीवों की दया का अधिकारी होता है।
(१४-१५) आठ सूक्ष्म वे कौन है, पूछत संजति जेह ।
कहत विचच्छन तिनहिं को, हे मतिधर वे येई॥ कवित्तमोस हिम धंध आदि, जल स्नेह सूक्षम हैं, बड़ उम्बरादि ते हैं सूक्ष्म सुमननि में। कुंयुमा प्रमुख छोटे जतु प्रानि सूक्षम हैं, कोड़ी नगरादि हैं उत्तिग सूक्ष्म गन में। लोलन फूलन सोई पनक सूक्षम जानो, तुष मुष आदि बीज सूक्ष्म गिनो मन में। भूमि-रंगवारी हरियारी, सो हरित सूक्ष्म, माखी कीट मावि अडे अंड-सूक्षमन में।
अर्ष-१ स्नेह पुष्प . ओस, बर्फ, कुहरा, ओला और भूमि से निकलने वाली जलबिन्दु, २ पुष्प सूक्ष्म-बड़, ऊंवर, पीपल आदि के फूल और इन जैसे ही अन्य दुर्लक्ष्य जीव वाले फूल फल; ३ प्राण सूक्ष्म-अनुन्धरी, कुन्थु आदि प्राणी जो चलने पर ज्ञात हों, स्थिर रहने पर दुज्ञेय हों; ४ उतिग सूक्ष्म-कीड़ी नगरादि, चीटियों