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६० धर्म के दशलक्षण
जिन कागज के नोटों पर यह मानव मर मिटने को फिर रहा है, यदि वे नोट गाय के मामने रखो तो वह सूंघेगी भी नहीं; जबकि घाम पर झपट पड़ेगी । गाय की दृष्टि में नोटों की कीमत घास के बराबर भी नही, पर यह अपने को सभ्य कहने वाला मानव उनके पीछे दिन गत एक किए डालता है । ऐसा क्या जादू है उनमें ? उनके माध्यम से पंचेन्द्रियों के विषयों की प्राप्ति होती है, मानादि कषायों की पूर्ति होती है । यही कारण है कि मानव उनके प्रति लुभा जाता है । यदि उनके माध्यम से भोगों की प्राप्ति सम्भव न हो, यशादि की प्राप्ति सम्भव न हो, तो उनको कोई भटे के भी भाव न पूछे ।
पैसे की प्रतिष्ठा आरोपित है, स्वयं की नहीं; प्रनः पैसों का लोभ भी आरोपित है ।
रूप के लोभी, नाम के लोभी रुपये-पैसों को पानी की तरह बहाते कहीं भी देखे जा मकते हैं । कहीं कोई सुन्दर कन्या देखी और राजा साहव लुभा गये। फिर क्या ? कुछ भी हो, वह कन्या मिलनी ही चाहिए । ऐसे सैंकड़ों उदाहरण मिल जायेंगे पुराणों में, इतिहास में । राजा श्रेणिक चेलना के, पवनञ्जय अंजना के रूप पर ही तो लुभाए थे ।
नाम के लोभी भी यह कहते मिलेंगे - भाई ! सबको एक दिन मरना ही है, कुछ करके जावो तो नाम अमर रहेगा । आत्मा को मरणशील और नाम को अमर मानने वाले और कौन हैं ? नाम के लोभी हो तो हैं । क्या दम है नाम की अमरता में ? एक नाम के अनेक व्यक्ति होते हैं, भविष्य में कौन जानेगा यह किसका नाम था ?
नाम की अमरता के लिए पाटियों पर नाम लिखानेवालो ! जरा यह तो सोचो भरत चक्रवर्ती जब अपना नाम लिखने गये तो वहाँ चक्रवर्तियों के नाम से शिला भरी पाई । एक नाम मिटाकर अपना नाम लिखना पड़ा । वे सोचने लगे-आगे आने वाला चक्रवर्ती मेरा नाम मिटाकर अपना नाम लिखेगा ।
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और न जाने कितने-कितने प्रकार के लोभी होते हैं ? चार प्रकार के लोभ तो आचार्य प्रकलंकदेव ने ही 'राजवार्तिक' में गिनाए हैं - जीवन - लोभ, आरोग्य- लोभ, इन्द्रिय- लोभ और उपभोग-लोभ ।